उत्तराखंड की दिव्यता – माँ हाटकालिका मंदिर का परिचय
माँ हाटकालिका मंदिर, गंगोलीहाट – उत्तराखंड का दिव्य शक्ति पीठ
उत्तराखंड, जिसे ‘देवभूमि’ कहा जाता है, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक धरोहरों के लिए प्रसिद्ध है। पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट क्षेत्र में स्थित माँ हाटकालिका मंदिर उत्तर भारत के प्रसिद्ध शक्ति पीठों में से एक है। यह मंदिर माँ काली को समर्पित है और धार्मिक, ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। बल्कि कुमाऊं क्षेत्र की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का भी प्रतीक है। यह शक्ति पीठ आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित माना जाता है और इसे हज़ारों वर्ष पुराना माना जाता है।
मंदिर का इतिहास और पौराणिक मान्यता
हाटकालिका मंदिर का उल्लेख हिंदू पुराणों, विशेष रूप से स्कंदपुराण के मानस खंड में मिलता है। ऐसा माना जाता है कि माँ काली ने पश्चिम बंगाल से अपना निवास स्थान बदलकर गंगोलीहाट में स्थापित किया। इस मंदिर की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी, जब उन्होंने इस क्षेत्र में माँ काली के क्रोध को शांत करने के लिए तंत्र-मंत्र साधना की थी। कथाओं के अनुसार, उस समय रात में माँ काली के द्वारा भगवान शिव का नाम पुकारा जाता था, और जो भी यह आवाज सुनता था, उसकी मृत्यु हो जाती थी। शंकराचार्य ने अपनी साधना से माँ को शांत किया और इस शक्ति पीठ को पुनर्जनन दिया।
आधुनिक समय में, संत जंगम बाबा ने इस मंदिर में वर्षों तक पूजा-अर्चना की। एक रात माँ काली उनके सपने में प्रकट हुईं और उन्हें मंदिर के निर्माण का आदेश दिया। इस प्रकार, वर्तमान मंदिर का निर्माण जंगम बाबा के प्रयासों से हुआ। मंदिर में प्रज्वलित एक शाश्वत अग्नि (होम) को माँ काली की ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है, जो अनादिकाल से जल रही है।

मूल स्थान: बूंगली गाँव
हाटकालिका मंदिर का मूल स्थान गंगोलीहाट से लगभग 8 किलोमीटर दूर बूंगली गाँव में स्थित है। यह स्थान माँ काली का प्राचीनतम निवास माना जाता है, जहाँ उनकी प्रारंभिक पूजा होती थी। बूंगली गाँव में माँ काली की एक छोटी मूर्ति स्थापित है, जिसे स्थानीय लोग और भक्त विशेष रूप से पूजते हैं। यह स्थान शांत और ग्रामीण परिवेश में बसा हुआ है, जहाँ भक्त माँ के दर्शन के लिए पैदल या छोटे वाहनों से पहुँचते हैं। बूंगली का मूल स्थान मंदिर की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक जड़ों को दर्शाता है, और यहाँ की सादगी भक्तों को गहरी शांति प्रदान करती है। कई भक्त मानते हैं कि बूंगली में दर्शन करने से उनकी मनोकामनाएँ विशेष रूप से पूर्ण होती हैं।
माँ हाटकालिका के चमत्कार
माँ हाटकालिका के चमत्कारों की कहानियाँ स्थानीय लोगों और भक्तों में प्रसिद्ध हैं। कुछ प्रमुख चमत्कार इस प्रकार हैं:
सैनिकों की रक्षा: कुमाऊं रेजीमेंट के सैनिकों का मानना है कि माँ हाटकालिका ने कई युद्धों में उनकी रक्षा की। विशेष रूप से 1971 के भारत-पाक युद्ध में, सैनिकों ने माँ के आशीर्वाद से असंभव परिस्थितियों में विजय प्राप्त की। कई सैनिकों ने बताया कि युद्ध के दौरान उन्हें माँ काली की उपस्थिति का अनुभव हुआ।
रोग निवारण: स्थानीय लोगों के अनुसार, माँ के दर्शन और चूनरी चढ़ाने से गंभीर बीमारियों से मुक्ति मिलती है। एक भक्त ने बताया कि लंबे समय तक चली असाध्य बीमारी माँ के दर्शन और बूंगली में पूजा के बाद ठीक हो गई।
मनोकामना पूर्ति: बूंगली गाँव और हाटकालिका मंदिर में चूनरी बाँधने की परंपरा प्रसिद्ध है। भक्तों का कहना है कि सच्चे मन से माँगी गई मनोकामना अवश्य पूरी होती है। कई भक्तों ने नौकरी, विवाह और संतान प्राप्ति जैसे चमत्कारों का अनुभव साझा किया है
आध्यात्मिक अनुभव: कई साधकों ने बताया कि मंदिर और बूंगली के मूल स्थान में ध्यान करने पर उन्हें माँ काली की दिव्य ऊर्जा का अनुभव हुआ। कुछ भक्तों ने रात में माँ के दर्शन या उनकी आवाज सुनने का दावा किया है।
प्राकृतिक चमत्कार: मंदिर के पास जनह्वी नौला, जो एक ओक वृक्ष से निकलता है, कभी सूखता नहीं। स्थानीय लोग इसे माँ काली का चमत्कार मानते हैं, जो उनकी निरंतर उपस्थिति का प्रतीक है।धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
हाटकालिका मंदिर कुमाऊं क्षेत्र, विशेष रूप से भारतीय सेना की कुमाऊं रेजीमेंट के लिए विशेष महत्व रखता है। इस रेजीमेंट का युद्ध घोष “कालिका माता की जय” है, जो माँ हाटकालिका के प्रति उनकी गहरी आस्था को दर्शाता है। सैनिक युद्ध या मिशन पर जाने से पहले माँ के दर्शन करने आते हैं और उनकी कृपा प्राप्त करते हैं। परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा भी माँ काली के भक्त थे।
स्थानीय लोगों का मानना है कि माँ काली रात में इस मंदिर में विश्राम करती हैं। भक्त अपनी मनोकामनाएँ माँ के समक्ष रखते हैं और चूनरी बाँधने की परंपरा निभाते हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर भक्त घंटियाँ चढ़ाते हैं। मंदिर में नवरात्रि के दौरान विशेष पूजा-अर्चना होती है, जिसमें देश-विदेश से श्रद्धालु शामिल होते हैं।
हाटकालिका मेला
हर वर्ष चैत्र और भादो मास की अष्टमी को गंगोलीहाट में हाटकालिका मेला आयोजित होता है। इस मेले में लोग ढोल-नगाड़ों और झंडों के साथ माँ काली को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। मेले में पशु बलि की परंपरा भी रही है, हालांकि आधुनिक समय में यह प्रथा कम हो रही है। यह मेला स्थानीय संस्कृति, नृत्य और संगीत का भी उत्सव है, जिसमें कुमाऊं क्षेत्र की छपेली और चोलिया जैसे लोक नृत्य देखने को मिलते हैं
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मंदिर का स्थान और प्राकृतिक सुंदरता
हाटकालिका मंदिर पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट में, घने देवदार के जंगलों के बीच स्थित है। यह स्थान समुद्र तल से लगभग 1,760 मीटर की ऊँचाई पर है और सरयू व रामगंगा नदियों के संगम के निकट है। मंदिर का परिसर प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है, जो इसे एक शांत और ध्यानमग्न स्थान बनाता है। मंदिर के पास ही जनह्वी नौला नामक जल स्रोत है, जो एक ओक वृक्ष से निकलता है।
मंदिर से 2 किलोमीटर की दूरी पर चामुंडा मंदिर और 13 किलोमीटर दूर पाताल भुवनेश्वर गुफा भी पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। मंदिर से हिमालय की बर्फीली चोटियों का मनोरम दृश्य दिखता है, जो इसे और भी आकर्षक बनाता है
कैसे पहुँचें
हाटकालिका मंदिर और बूंगली गाँव सड़क, रेल और हवाई मार्ग से अच्छी तरह जुड़े हुए हैं:
सड़क मार्ग: मंदिर राष्ट्रीय राजमार्ग 309A पर स्थित है। यह पिथौरागढ़ शहर से 76 किमी, बेरीनाग से 23 किमी और पाताल भुवनेश्वर से 13 किमी दूर है। चौरकोरी से मंदिर की दूरी लगभग 35 किमी है। बूंगली गाँव मंदिर से 8 किमी दूर है और स्थानीय टैक्सी या पैदल मार्ग से पहुँचा जा सकता है।
रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है, जो मंदिर से 180 किमी दूर है। काठगोदाम से टैक्सी आसानी से उपलब्ध हैं
लेखक: मनोज गड़िया
(लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता, उद्यमी, सलाहकार)