पंचायत चुनाव भारत की ग्रामीण शासन व्यवस्था का आधार हैं। ये चुनाव स्थानीय स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करते हैं, जहां ग्रामवासी अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं। उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में पंचायत चुनाव का विशेष महत्व है, क्योंकि यहाँ की भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियाँ अनूठी हैं। पिछले 50 वर्षों में पंचायत चुनावों में कई महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं, जिन्होंने उत्तराखंड के ग्रामीण विकास को प्रभावित किया है।
पंचायत चुनाव का महत्व
स्थानीय शासन: पंचायतें ग्राम स्तर पर विकास कार्यों, जैसे सड़क, पानी, और शिक्षा, का प्रबंधन करती हैं।
लोकतंत्र की नींव: ये चुनाव ग्रामीण जनता को अपनी आवाज उठाने और निर्णय प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर देते हैं।
महिला सशक्तिकरण: पंचायतों में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें उन्हें नेतृत्व के अवसर प्रदान करती हैं।
सामुदायिक विकास: स्थानीय समस्याओं का समाधान स्थानीय स्तर पर ही संभव होता है, जिससे विकास कार्य तेजी से पूरे होते हैं।
उत्तराखंड के संदर्भ में
उत्तराखंड में पंचायत चुनाव ग्रामीण विकास की रीढ़ हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं की कमी, पलायन, और प्राकृतिक आपदाओं जैसे मुद्दों पर पंचायतें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यहाँ के पंचायत प्रतिनिधि निम्नलिखित क्षेत्रों में योगदान देते हैं:
पलायन रोकथाम: स्थानीय रोजगार और स्वरोजगार योजनाओं को बढ़ावा देना।
प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन: वन, जल, और भूमि के संरक्षण के लिए नीतियाँ बनाना।
महिला और युवा भागीदारी: ग्रामीण महिलाओं और युवाओं को विकास प्रक्रिया में शामिल करना।
आपदा प्रबंधन: भूस्खलन और बाढ़ जैसी आपदाओं में त्वरित राहत और पुनर्वास।

पिछले 50 वर्षों में प्रमुख बदलाव
पिछले 50 वर्षों में उत्तराखंड में पंचायत चुनावों में कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं, जो निम्नलिखित हैं:
संवैधानिक मान्यता (1993): 73वें संवैधानिक संशोधन ने पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया। इससे उत्तराखंड में पंचायतों को नियमित चुनाव और वित्तीय अधिकार मिले, जिससे स्थानीय शासन मजबूत हुआ।
राज्य निर्वाचन आयोग की स्थापना (2001): उत्तराखंड के गठन के बाद, 2001 में राज्य निर्वाचन आयोग की स्थापना हुई। यह आयोग पंचायत और शहरी स्थानीय निकाय चुनावों को पारदर्शी और निष्पक्ष ढंग से संचालित करता है।
शैक्षिक योग्यता का प्रावधान (2019): उत्तराखंड पंचायती राज (संशोधन) अधिनियम 2019 ने उम्मीदवारों के लिए शैक्षिक योग्यता निर्धारित की। सामान्य वर्ग के लिए हाई स्कूल और महिलाओं/आरक्षित वर्ग के लिए मिडिल स्कूल पास होना अनिवार्य है।
दो से अधिक बच्चों पर प्रतिबंध (2019): 2019 के संशोधन में दो से अधिक जीवित बच्चों वाले उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोकने का प्रावधान था, लेकिन 2024 में इस प्रतिबंध को हटा लिया गया, जिससे अधिक लोग चुनाव में भाग ले सकते हैं।
महिलाओं के लिए आरक्षण: पंचायत चुनावों में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित की गईं, जिसे बाद में बढ़ाकर 50% किया गया। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में महिला नेतृत्व को बढ़ावा मिला।
डिजिटल प्रगति: 2019 से चुनाव परिणाम ऑनलाइन और मोबाइल ऐप के माध्यम से उपलब्ध हैं, जिससे पारदर्शिता बढ़ी। 2025 में पहली बार सभी परिणाम ऑनलाइन जारी करने का निर्णय लिया गया।
परिसीमन और पुनर्गठन (2024): 2024 में 50 नई ग्राम पंचायतें बनाई गईं और 13 निरस्त की गईं, जिससे कुल 7,832 ग्राम पंचायतें अस्तित्व में आईं। इससे स्थानीय प्रशासन को और सशक्त किया गया।
निर्विरोध निर्वाचन: 2025 के चुनावों में 22,429 उम्मीदवार निर्विरोध चुने गए, जो प्रक्रिया की दक्षता और स्थानीय सहमति को दर्शाता है।
पंचायत चुनाव उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतांत्रिक मूल्यों और विकास को बढ़ावा देते हैं। पिछले 50 वर्षों में संवैधानिक मान्यता, शैक्षिक योग्यता, डिजिटल पारदर्शिता, और महिलाओं के लिए आरक्षण जैसे बदलावों ने पंचायती राज व्यवस्था को और सशक्त किया है। ये बदलाव न केवल स्थानीय समस्याओं के समाधान का माध्यम हैं, बल्कि सामाजिक समावेश और सशक्तिकरण का भी प्रतीक हैं। उत्तराखंड में इन चुनावों की सफलता राज्य के समग्र विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
मनोज गड़िया
(लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता, उद्यमी, सलाहकार)